सिर्फ जानवरों के बारे में नहीं, इंसानों के बारे में भी सोचना होगा- सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों के परिचालन पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया। दरअसल रामनगर -कालागढ-कोटद्वार मार्ग कंडी सड़क पर सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि जानवरों के साथ-साथ इंसानों के बारे में भी सोचना होगा।…


सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों के चलने के मुद्दे पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि ‘केवल जानवरों के बारे में नहीं, इंसानों के बारे में भी थोड़ा सोचना होगा। शीर्ष अदालत ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों के परिचालन की अनुमति देने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है।
पीठ ने इस मामले की सुनवाई 3 सप्ताह के लिए स्थगित कर दी। साथ ही उत्तराखंड और केंद्र सरकार की ओर से पेश वकीलों को सीईसी रिपोर्ट की प्रति मुहैया कराने का निर्देश दिया। पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को सीईसी की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों के परिचालन की अनुमति दिए जाने के फैसले को चुनौती दी है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक ने 23 दिसंबर, 2020 के अपने कार्यालय आदेश के माध्यम से एक निजी क्षेत्र की कंपनी की बसों को उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के मुख्य क्षेत्र में परिचालन की अनुमति दी है। इसके खिलाफ दाखिल याचिका में कहा गया है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 38 (ओ) के तहत प्रावधान है कि बाघ अभयारण्यों को पारिस्थितिकी दृष्टि से असंवहनीय उपयोगों के लिए नहीं बदला जाएगा और यदि आवश्यक हो तो उत्तराखंड राज्य और उसके वन विभाग के अधिकारियों के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की सलाह पर मंजूरी लेना अनिवार्य है। यह दलील देते हुए याचिका में राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक के आदेश को रद्द करने की मांग की।

इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2024 में सभी के अधिकारों को संतुलित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि यदि गांव हैं, तो उन्हें भी पहुंच की आवश्यकता होगी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि एक निजी कंपनी को गलत लाभ पहुंचाने के लिए, राज्य के वन अधिकारियों ने उसे बाघ अभयारण्य के मुख्य क्षेत्र में बसें चलाने की अनुमति दी। शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी, 2021 को नेशनल पार्क द्वारा 23 दिसंबर, 2020 को जारी कार्यालय पत्र के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी, जिसमें बसों को मुख्य क्षेत्र में चलने की अनुमति दी गई थी। इस मामले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सड़क बफर और मुख्य क्षेत्र दोनों से होकर गुजरती है। राज्य सरकार ने कहा था कि कुल 53 किलोमीटर में से 45 किलोमीटर सड़क बफर जोन में है है, जबकि 8 किलोमीटर मुख्य क्षेत्र से होकर गुजरती है।

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