द्रोणसागर
यों तो वसुधा पर अगणित प्राणी आये, आते हैं।
किंतु मृत्तिका कण से उड़कर कहीँ चले जाते हैं।।
उनमे से कुछ यहाँ छोड़ जाते हैं अमिट निशानी।
जिस पर आधारित होती है उनकी अमर कहानी।।
लगा हिमालय-पदाम्बुजो से #काशीपुर नगर है।
जिसकी पूर्व दिशा में शोभित तीर्थ #द्रोणसागर है।।
गुरुवर द्रोणाचार्य यहीँ करते थे कठिन तपस्या।
कौरव पांडवों की सुलझाते थे जटिल समस्या।।
यहीं बने थे कभी द्रोण पाण्डव के दुर्ग मनोहर।
काल गाल वश आज शेष है केवल उनके खँडहर।।
फिर भी इनके भीतर युग का क्रमिक विकास छिपा है।
मानवता का संस्कृति का पावन इतिहास छिपा है।।
यह सागर है नहीँ, सरोवर, सागर से बढ़कर है।
इसका निर्मल नीर उदधि जल से भी पावन तर है।।
वैवस्वत पुराण में अंकित है इसकी गुण गरिमा।
निज लेखों में ह्वेनसांग ने गाई इसकी महिमा।।
बड़भागी हैं कितने इस सागर के रम्य किनारे।
यह वह पावन तीर्थ जहां अपने अमिताभ पधारे।।
जिस वट तरु के तले बैठ #तुलसी करते थे पूजन।
जिस वट तरु के तले हुआ सन्ध्या वंदन आराधन।।
वह तुलसी वट अब भी व्याकुल हो पथ झांक रहा है।
कर फैलाये
श्री गणेश शंकर शुक्ल ‘बन्धु’
MA, साहित्यरत्न की #द्रोणसागर पर कविता, काशीपुर पूर्वज समाज, भूतकाल